उलझी उलझी बातें तेरी , खट्टी मीठी रातें मेरी कोई वादा कर के भी अधूरी, ऐसी हैं ये आखें मेरी बर्फ और ओस की बूँदें ले आ, कटी पतंगें सारी ले आ उन्हें उडा दे, गीत कोई नए सजा दे, ऐसी है ये आशा मेरी वादें कऐ करती हूँ, उनके फ़साने लिखूंगी सदियाँ बीत जाएँगी मै प्यार के नजराने लिखूँगी जब जब वो लौ सजी होगी महफ़िल में में तब तब तुम्हारे सरहाने मिलूंगी कोई बीच में तो कोई किनारों पे छोड़ जाता है साहिल के दायरे के परे खुद चला जाता है अकेले नहीं छोडूंगी यही वादा है मेरा , बाकी, किसे पता कब तक है इस आशियाने पे बसेरा
This blog is the chalk with which i dirty the black board of opinion; whats YOURS ???