धूप सी पड़ी तो कमज़ोर पड़ गए
वह बुलंद ख्याल बेमाहॉल पड़ गए
बंद कमरे में रौशनी से चिलमिला गए
इन रातों की शायरी से जगमगा गए
शहरयार ने जो समां बंधा
साहिल में बह गए।
शहरों की हड़बड़ी में घुल के रह गए
इस रात का जलज़ा ओढ़ा तो नहीं था
सुबह की नर्मियों में मोमबत्तियों से बह गए
वह बुलंद ख्याल बेमाहॉल पड़ गए
बंद कमरे में रौशनी से चिलमिला गए
इन रातों की शायरी से जगमगा गए
शहरयार ने जो समां बंधा
साहिल में बह गए।
शहरों की हड़बड़ी में घुल के रह गए
इस रात का जलज़ा ओढ़ा तो नहीं था
सुबह की नर्मियों में मोमबत्तियों से बह गए
Comments