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Showing posts from April, 2019

रंजिश ए काश्मीर

रंजिश ए काश्मीर हम ने नहीं कहा मिलना नहीं होगा रंजिश होगी रहेगी , मगर पर्दा होगा आखिरी समय तक अंजाम नहीं मिलता कहीं खोया हुआ नाम नहीं मिलता समय सरपट दौड़ा खड़े रहे हम या फिर बारिश हो रही थी थमे रहे हम बढे नहीं आगे - मगर तुम्हे देखा कब कहीं मुलाकात लिखी थी यही यक़ीन से सोचा पर हक़ीक़त का ज़ुल्म अलग ही था आका बदल दिया मन को , फज़ल है ये भांपा अदालत में खड़े थे मुकदमा लड़ रहे थे भनक भी न थी ख़तम हो गयी कारवाही अपने आप को लाख दी दुहाई पर मिटटी में जो दबा दिया जाता है वह कभी उभर नहीं आता "वफ़ात" की कोई हद नहीं होती जलाज़े का कोई इल्म नहीं आता